Tuesday, November 1, 2016

खान्देश भ्रमंती

र ्व  तयारी,  प्रस्थान कधी  कधी  अच  नक  ठरर्लली  मोहिम  पण  खप  क  िी  हमळर्न  दत,  सगळ्य च  गोष्टी  मन  स रख्य    घडत त. क गद र्रच  हनयोजन  ततोतत  अमल  त  यत,  सरतशर्टी  गोड  आठर्णी  आहण  च गल    सखद  अनभर्  दऊन  ज त. असच क िी  आमच्य    ब  बतीत  घडल.  बधर्  री  दप  री  अच  नक  मन  त  आल,  य    शहनर् र  रहर्र्  र  एख द    च गल    ट्रक करूय .  लगच  म  झ  स्निी  ज्यष्ठ  हगय रोिक  श्री.ई.एन.न  र यण  (अकल)  य न    फोन  ल र्ल  .  त्य नी  िोक र  हदल  , मल    म्िण  ल  "आप बोलो  हकधर  ज  न  क  "  म झ्य    मन  त  प्ल न  तय र  िोत  ,  भीम  शकर  कजत  य    भ  ग तल्य   घ टर् ट  .  जस  की  र् जत्री,  फण्य  दर्ी,  कसर  अश    अल्प  पररहचत  घ टर् ट  ,य    ब  बतीत  म  झ  'हडस्कर्र  सह्य द्रीक  र स ईद  '  बरोबर  बोलण  झ  ल.  पण  सध्य ची  प र्स  ची  हस्थती  र्  अद  ज  प  िन  आमच  क  िी  नक्की  िोत  नव्ित.  िो-न   करत  तो  हदर्स  तस च  गल  .  गरूर्  री  सक  ळी  म झ्य    मन  त  आणखी  एक  र्गळ    प्ल न  तय र  झ  ल    तो  म्िणज 'ख  न्दश  दगर्  री'.  मी  अस    अद  ज  ब धल    की  आपल्य    भ  ग त(कोकण  पट्ट  )  प ऊस  ज स्त  असल  तर  ख  न्दश परगण्य त ज ऊ, आहण जर कमी झ ल  तर मग र्ररल पकी भीम शकर भ ग तली एख दी घ टर् ट करू. स यक ळी परत न र यण अकलच  फोन "योगश,  क्य    करन  क    बोलो  ?  घ टर् ट  करन  क    क्य    ?" मी: "अकल  ब  रीश  कम  िआ  तो  हठक  निी  तो  कछ  और" अकल: "अच्छ    तो  हठक  ि,  जस  आप  बोलो." मी: "और  मतलब,  धळ  न  हशक  स ईड  चलत  ि,  य  मौसम  म  र्ि    ज न    हठक  रिग  ." अकल: "  र्ो  तो  म  लम  ि,  एकदम  बहढय    बोलो  हफर  ?" मी: "लळींग, सोनगीर, ग ळण , कक्र ळ , डरम ळ और हपसोळ"

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